शिक्षा के साथ अच्छे संस्कारों का होना भी आवश्यक
प्रतिस्पर्धा के इस युग में आज उत्कृष्ट जीवन जीने के लिए मनुष्य में दो बातों का होना बहुत आवश्यक हैंः- 1. शिक्षा एवं 2. संस्कार। शिक्षा के अभाव में अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना थोड़ा मुश्किल लगता है। जीवन में नई ऊँचाईयों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा ही एक सर्वोत्तम सीढ़ी हैं। लेकिन मात्र शिक्षा का होना ही मनुष्य के जीवन में इतना मायने नहीं रखता जब तक उसमें संस्कार रूपी गुण न मिला हो। जहाँ शिक्षा व्यक्ति को समाज में अच्छे से रहने की कला सिखाती है वही अच्छे संस्कार उसके व्यक्तित्व में चार चाँद लगाते हैं। किसी भी प्राणी को संस्कार गुरु से अथवा माता-पिता से ही मिल सकते हैं। संस्कार व्यक्ति को धरती पर रहते हुए अम्बर (आकाश) को छूने की प्रेरणा देते हैं। अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार ही एक व्यक्ति को महान् बनाते हैं।
शिक्षा का उद्देश्य आज के दौर में मात्र आजीविका का साधन ही रह गया। प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा को लेकर चिंतित रहते है कि हमारे बच्चें अच्छी व ऊँची शिक्षा प्राप्त करें। प्रायः सभी अपनी संतान को एक अच्छा डॉक्टर, अच्छा इंजीनियर, ऊँचा वकील तथा आई. ए. एस. ऑफीसर तो बनाना चाहते है, लेकिन उनमें से कितने है जो यह चाहते हैं कि उनकी संतान एक अच्छा आदमी बनें। बच्चों में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण कैसे किया जाए इसको लेकर कोई भी अभिभावक प्रायः चिन्तित नजर नहीं आता। अक्सर देखा गया है कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए दूसरे शहरों या विदेशों में भेज कर अपने से भी दूर कर देते हैं। बच्चें वहाँ अच्छी शिक्षा तो प्राप्त कर लेते हैं लेकिन संस्कारों के अभाव में वे अपने अभिभावकों से दूर रहना ही पसन्द करते हैं। इसका खामियाजा बुढ़ापे में उनके माता-पिता को अकेले रहकर भोगना पड़ता है। अच्छी शिक्षा मात्र आजीविका का साधन ही नहीं, संस्कारों के साथ जीवन जीने की साधना भी है।
मित्रों! जीवन में सफल वहीं होता है जिसमें अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी हो। अच्छे व्यक्तित्व का जन्म अच्छे संस्कारों से होता है। संस्कार जीवन का निर्माण करते है। हमें अपनी नई पीढ़ी को अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कारों के महत्त्वों को समझाते हुए उन्हें परिवार, समाज, धर्म व राष्ट्र के प्रति उनके क्या-क्या कर्त्तव्य एवं दायित्व है, इनका बोध कराना भी आवश्यक है। पेट तो पशु-पक्षी भी भर लेते है। केवल अच्छी शिक्षा को प्राप्त कर लेने से ही जीवन में विनम्रता, सरलता, नम्रता, अनुशासन एवं सहनशीलता नहीं आती। इसके लिए शिक्षा के साथ अच्छे संस्कारों को होना भी आवश्यक है। कहते है कि एक माँ अपने बच्चे को अपनी गोद में बिठाकर जो सिखाती है वही ज्ञान जब बच्चा अच्छे से सीखता है, तो जिन्दगी भर उसे नहीं भूलता। अच्छे संस्कार वही दे सकता है, जिसने स्वयं संस्कारी जीवन जिया हो। एक जलता हुआ दीपक ही बुझे हुए दीपक को जला सकता है।
— राजीव नेपालिया (माथुर)