कविता

छल कपट

वो मिलते हैं मुस्कुराके

खंजर हाथ में छिपाके

गले से लगाते हैं

पीछे से बार कर जाते हैं

हम भी कितने नादान हैं 

जानते हैं राज उनके

इस कदर मुस्कुराने का

फिर भी बड़े प्यार से गले उनसे मिलते हैं

दगा हमनें सीखी नहीं

वफ़ा वो जाने नहीं

उनको मुबारक़ उनकी बेवफाई

हमको अपनी बावफाई

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020