शाम की आंखों में
सुरमई शाम की आंखों में, कुछ नमी सी है।
आज मौसम के ईरादों में, कुछ कमी सी है।
चांद भी अब तलक, आया नहीं अटारी पे,
कुछ अंधेरों में ये, डूबी हुयी जमीं सी है।
कुछ उदासी सी है, छाई इन दिनों साहिल पे,
आज जाने न क्यूं ,लहरें ये अनमनी सी है।
रब्त को इतना, बढ़ाके हमें, छोड़ा तनहां,
जल रही है शमा, मगर लगे, बुझी सी है।
गुज़र के भी ये जिंदगी, अभी नहीं गुज़री,
शिकस्ता पा ही सही, जिंदगी बाकी सी है।
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”