ग़ज़ल
एक दिन तो सबको जाना है।
किसको याद फिर आना है।
तुम निगाहों से भले डराओ,
हमने भी क्या तुमसे पाना है।
चले शौक़ से तुम संग कभी,
नामालूम कैसा दोस्ताना है।
कशमकश सी है दरमियाँ भी,
कितना हमें बता आज़माना है।
खलिश सी रह जाएगी ज़िन्दगी,
कौन कहेगा अब हमें सयाना है।
मिल जाएंगे जब माटी में हम,
कर्ज़ ज़िन्दगी जाने चुकाना है।
— कामनी गुप्ता