मौत निश्चित है छोड़ेगी नहीं
मौत निश्चित है छोड़ेगी नहीं यह सब जानते हैं
फिर भी पूरा जोर लगा देते हैं ज़िन्दगी बचाने को
पूरी उम्र गंवा दी लगे रहे इसी ताने बाने में
लगे रहते हैं ज़िन्दगी भर इसको उठाने में उसको गिराने में
पास ही रहती है वो हमेशा चुपके से है साथ चलती
कब जैसे गर्दन मरोडूँ हमेशा रहती है मचलती
आएगी तो सभी के पास सबको इसके साथ है जाना
अटल है यह किसी के टाले से भी नहीं है टलती
आएगी दबे पांव किसी को भी नहीं होता एहसास
सब डरते हैं इससे नहीं जाना चाहते इसके पास
बड़े आराम से सुलाती है अपने आगोश में
न जाने क्यों रहती है सबको फिर भी जीने की आस
न ही यह डरती है किसी से न ही डराती है
समय जिसका हुआ पूरा तुरंत उसके पास आ जाती है
न मुहूर्त निकालती है न देखती है दिन और रात
खड़ी हो जाती है सामने फिर मुस्कुराती है
इसका कहा कोई टाल नहीं सकता
प्रलोभन इसको कोई लुभा नहीं सकता
एक एक पल का हिसाब रखती है सब का
कोई इसके चंगुल से छुड़ा नहीं सकता
— रवींद्र कुमार शर्मा