गीतिका
उर अंजुलि में भाव लिए मैं,आया तेरे द्वार।
चरणों में अर्पित हैं माता,करो इन्हें स्वीकार।1
अनगढ़ भावों की कविता कब,पाती जग में मान,
करो परिष्कृत भावों को माँ,खिले काव्य संसार।2
दूर करो माँ बुद्धिप्रदायिनि, लेखन के सब दोष,
मुकुलित शब्दों से कल्याणी,करूँ काव्य सिंगार।3
मानस पटल करो आलोकित,देकर पावन ज्ञान,
झंकृत कर दो मन वीणा के ,मातु शारदा तार।4
कैसे रचूं छंद मैं माता, पिंगल से अनजान,
छंद रीति गुण दोष सिखाओ,देकर अपना प्यार।5
विनती करता सम्मुख तेरे, मैं मतिमंद विमूढ़,
ले लो शरण मुझे माँ वाणी,कर दो दूर विकार।6
जन मन की पीड़ा का लेखन,कर दो संभव मातु,
ओजपूर्ण मसि भरो कलम में,होगा माँ उपकार।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय