इक नया सवेरा लाएगा
ढलती रात में धीरज धरो,इक नया सवेरा लाएगा।
बीत जाएगा आज है कल ,अतीत बन के आएगा।
ढलती रात में ख़ामोश ज़िंदगी, सोई इतमीनान से,
उगता सूरज न जाने फिर ,जिंदगी कहाॅं भगाएगा।
है ढलती रात यौवन की बुढ़ापा राह देख रहा तेरी,
जवानी का नज़ारा एक दिन यह सब छूट जाएगा।
ढलती रात कह रही है सोच ले आदमी तुम इतना,
आज है पास जो तेरे फिर कभी नहीं मिल पाएगा।
चांद की चांदनी पल रात में आखिर ढल जाएगी,
साथ तेरा प्यार का उम्र भर दिल को तड़पाएगा।
आ के आगोश में बैठो मेरी मैं मुहब्बत का नूर दे दूॅं,
ढलती रात में मिलन , रूहों का फिर न हो पाएगा।
यह ढलती रात तेरे दुखों को ,आंचल में छुपा लेगी,
तेरी खुशियों की जन्नत नया सवेरा तुझे दिलाएगा।
ढलती रात नहीं होती तन्हाई की शाम नही होती,
तड़पन दिलके मिलन की तेरी फिर कौन जगाएगा।
— शिव सन्याल