लघुकथा

बहार

दादा जी की उपेक्षा पोते से देखी नहीं जा रही थी. जब पिताजी नौकर से कहते थे कि “हरि पापाजी को खाना दे आओ और हमारा खाना भी लगाओ.” तो पोता कहता था, “हरि मेरा खाना भी दादाजी के साथ लगाना, मैं दादाजी के बिना डाइनिंग टेबिल पर बैठकर खाना नहीं खा सकता. आखिर, वे ही तो हमारे परिवार के मुखिया हैं.” दो-चार बार ऐसा करने पर पिताजी की समझ में बात आ गई और वे भी अपने पिताजी को आदर सहित खाना खिलाने लगे और अच्छी तरह देखभाल करने लगे. दादाजी के मुख से तो वैसे भी बेटे व पोते के आशीर्वादों की झड़ी झरती थी, पर पोते की इस पहल पर तो वे बलिहारी जाते थे.
दादाजी की जिंदगी में बहार आ गई थी.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244