बहार
दादा जी की उपेक्षा पोते से देखी नहीं जा रही थी. जब पिताजी नौकर से कहते थे कि “हरि पापाजी को खाना दे आओ और हमारा खाना भी लगाओ.” तो पोता कहता था, “हरि मेरा खाना भी दादाजी के साथ लगाना, मैं दादाजी के बिना डाइनिंग टेबिल पर बैठकर खाना नहीं खा सकता. आखिर, वे ही तो हमारे परिवार के मुखिया हैं.” दो-चार बार ऐसा करने पर पिताजी की समझ में बात आ गई और वे भी अपने पिताजी को आदर सहित खाना खिलाने लगे और अच्छी तरह देखभाल करने लगे. दादाजी के मुख से तो वैसे भी बेटे व पोते के आशीर्वादों की झड़ी झरती थी, पर पोते की इस पहल पर तो वे बलिहारी जाते थे.
दादाजी की जिंदगी में बहार आ गई थी.
— लीला तिवानी