लघुकथा

मुंहबोला भाई

निहालू प्लंबर वाशरूम का नल ठीक करने आया था. दरवाजा खोलने वाली वैशाली को वह एकटक देखता ही रह गया.
“आइए.”
वह नल ठीक करने लग गया, पर उसका ध्यान वैशाली के जाने-पहचाने चेहरे की ओर ही लगा रहा.
“अरे, यह तो अपनी मुन्नी है!” अचानक उसकी नजर बेडरूम में लगी तस्वीर पर पड़ी. बहुत सारी तस्वीरों के बीचों-बीच उसी चीथड़ों वाली फ्रॉक में मुन्नी ध्रुव तारे की तरह चमक रही थी.
“एक दिन आठ साल का मैं ही तो उसे अकेला न संभाल पाने के कारण फुटपाथ पर रोता छोड़कर भाग निकला था.”
“सोचा था, इसको पलना होगा तो कोई तो इसे पाल ही लेगा. और कोई चारा जो न था!”
“अब उसको बताऊं या नहीं?” उसके मन में हलचल मची थी.
“नहीं.” उसके मन ने गवाही दी. वह उसकी खुशनुमा जिंदगी में भूचाल जो नहीं लाना चाहता था.
नल भी ठीक हो गया था और उसका मन भी.
“कितने रुपये हुए भैय्या?” वैशाली ने उससे पूछा.
“आपने मुझे भैय्या कहा है, बस भैय्या ही रहने दीजिए. हर रक्षा बंधन को मैं राखी बंधवाने आ जाया करूंगा. 21 साल से मैं बहिन को तरस रहा हूं. मुझे मुंहबोला भाई ही समझ लीजिए.”
और वह तेजी से निकल गया.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244