हाथों की जुंबिश
मेरे आंगन में बरसने वाली बरसाते अब कहीं और बरसती है
मेरे हिस्से की शबनम अब किसी और को भिगोती है ।
कभी जो थामा था मेरा हाथ बड़े प्यार से
अब उन हाथों में किसी और के हाथों की जुंबिश है।
जिन जुगनूओ से कभी मेरी रातें रोशनी थी
अब वो किसी और की रातों को रोशन करती है ।
मेरे गुलिस्तां के फूलों की खुशबू से
अब घर किसी और का महकता है ।
हो गए है वो गैर के दिल की धड़कन
कम्बख़त मेरा दिल आज भी उनके लिए ही धड़कता है ।
आखिर क्योंकर ऐसी ताबीर है इश्क की
जो दिल में होते हैं वो तक़दीर में क्यों नहीं है ।
— विभा कुमारी ‘नीरजा’