ग़ज़ल
यह किस्मत फूल की है संग उसके ख़ार हुआ
तोड़े उसे कोई तो दामन तार – तार हुआ
ख़ार बन कर ही चुभते रहे सदा ज़िंदगी भर
तेरे ही कारण जीना मेरा दुश्वार हुआ
एक मज़ार ही तो बन कर सुन ले मैं रह गयी
किसी ग़ैर से ही तो जब से तुझको प्यार हुआ
ख़ाक बन कर राख़ मेरी उड़ती रही यहाँ पर
तुझको बता तो मुझ पर न कभी ऐतबार हुआ
नीयत थेरी बदली हुई उसी की तरफ़ मैली
उसका ही तुझ पर सुन ले तब तो कटु वार हुआ
लाख चाहा खींचना उस छोर से इस छोर तक
मौत आने तक भी तू तो न ख़बरदार हुआ
क्या पड़ा फ़र्क तुझको मेरी मौत पर कोई
मैं गयी , वो भी न मिली तेरा बँटाधार हुआ
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’