कुंडलिया छंद ( विवेकानंद जी )
तन पर शोभित था सदा,जिनके भगवा रंग।
उनकी वाणी सुन सभी ,हो जाते थे दंग।
हो जाते थे दंग , देख कर धर्म पताका।
समझाया वेदांत , बने वे पुरुष शलाका।
जाग्रत किया समाज,गर्व है हमको उन पर।
नाम विवेकानंद, दिव्य आभा थी तन पर।।1
माना जिनको विश्व ने,था व्यक्तित्व विराट।
पूज्य विवेकानंद हैं , युवा हृदय- सम्राट।
युवा – हृदय सम्राट ,बने थे जगत विजेता।
दिया घूम संदेश , लगे वे धर्म – प्रणेता।
सत्य सनातन धर्म ,जिन्होंने था पहचाना।
उसका किया प्रचार ,जगत ने लोहा माना।।2
सोहे पगड़ी शीश पर ,और खड़ाऊँ पैर।
उन पर मोहित थे सभी,अपना हो या गैर।
अपना हो या गैर ,सभी को गले लगाया।
देकर ज्ञान प्रकाश,जगत भ्रम दूर भगाया।
वाणी में था ओज ,वक्तृता मन को मोहे।
आकर्षक व्यक्तित्व ,देह पर भगवा सोहे।।3
आजादी थी प्रिय जिन्हें,हृदय राष्ट्र अनुराग।
उनके अथक प्रयास से ,जागे सोये भाग।
जागे सोए भाग , जोश उर में उपजाया।
स्वाभिमान के साथ ,सदा जीना सिखलाया।
राष्ट्र धर्म सर्वोच्च,अलख यह हृदय जगा दी।
चलकर उनकी राह ,मिली हमको आज़ादी।।4
डाॅ बिपिन पाण्डेय