कविता

पुरुष 

कष्टों को जो हॅंसते-हॅंसते सहजाता 

ऑंधी-तूफान, बवंडर में भी मुस्काता 

परिवार हित हर मुसीबत से लड़ जाता 

वो पुरुष कहलाता ।।

बचपन से बुढ़ापे तक जिम्मेदारी का बोझ 

कभी बेटा, कभी भाई, कभी बाप, कभी दादा

बनकर निज कर्त्तव्य पथ पर चलता जाता 

वो पुरुष कहलाता ।।

स्वयं के अरमानों का गला घोंट

अपनों के सब सपने पूरा करता 

जमाने भर का दर्द पीकर शांत रहता 

वो पुरुष कहलाता ।।

हरदम जलता-पिघलता पर मुंह न खोलता 

पत्थर सा कठोर चेहरा, हृदय फूल सा कोमल

दिखता बड़ा गुस्सेल परंतु छिप-छिप रोता

वो पुरुष कहलाता ।।

परिवार की हर जरूरत पूरी करता 

स्त्री का सम्मान, बच्चों का भगवान होता

विष पीकर वह अमृत बरसाता 

वो पुरुष कहलाता ।।

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111