कुण्डली/छंदपद्य साहित्य

कुंडलिया छंद ( विवेकानंद जी )

तन पर शोभित था सदा,जिनके भगवा रंग।
उनकी वाणी सुन सभी ,हो जाते थे दंग।
हो जाते थे दंग , देख कर धर्म पताका।
समझाया वेदांत , बने वे पुरुष शलाका।
जाग्रत किया समाज,गर्व है हमको उन पर।
नाम विवेकानंद, दिव्य आभा थी तन पर।।1

माना जिनको विश्व ने,था व्यक्तित्व विराट।
पूज्य विवेकानंद हैं , युवा हृदय- सम्राट।
युवा – हृदय सम्राट ,बने थे जगत विजेता।
दिया घूम संदेश , लगे वे धर्म – प्रणेता।
सत्य सनातन धर्म ,जिन्होंने था पहचाना।
उसका किया प्रचार ,जगत ने लोहा माना।।2

सोहे पगड़ी शीश पर ,और खड़ाऊँ पैर।
उन पर मोहित थे सभी,अपना हो या गैर।
अपना हो या गैर ,सभी को गले लगाया।
देकर ज्ञान प्रकाश,जगत भ्रम दूर भगाया।
वाणी में था ओज ,वक्तृता मन को मोहे।
आकर्षक व्यक्तित्व ,देह पर भगवा सोहे।।3

आजादी थी प्रिय जिन्हें,हृदय राष्ट्र अनुराग।
उनके अथक प्रयास से ,जागे सोये भाग।
जागे सोए भाग , जोश उर में उपजाया।
स्वाभिमान के साथ ,सदा जीना सिखलाया।
राष्ट्र धर्म सर्वोच्च,अलख यह हृदय जगा दी।
चलकर उनकी राह ,मिली हमको आज़ादी।।4

डाॅ बिपिन पाण्डेय

      

डॉ. बिपिन पाण्डेय

जन्म तिथि: 31/08/1967 पिता का नाम: जगन्नाथ प्रसाद पाण्डेय माता का नाम: कृष्णादेवी पाण्डेय शिक्षा: एम ए, एल टी, पी-एच डी ( हिंदी) स्थाई पता : ग्राम - रघुनाथपुर ( ऐनी) पो - ब्रह्मावली ( औरंगाबाद) जनपद- सीतापुर ( उ प्र ) 261403 रचनाएँ (संपादित): दोहा संगम (दोहा संकलन), तुहिन कण (दोहा संकलन), समकालीन कुंडलिया (कुंडलिया संकलन), इक्कीसवीं सदी की कुंडलियाँ (कुंडलिया संकलन) मौलिक- स्वांतः सुखाय (दोहा संग्रह), शब्दों का अनुनाद (कुंडलिया संग्रह), अनुबंधों की नाव (गीतिका संग्रह), अंतस् में रस घोले ( कहमुकरी संग्रह), बेनी प्रवीन:जीवन और काव्य (शोध ग्रंथ) साझा संकलन- कुंडलिनी लोक, करो रक्त का दान, दोहों के सौ रंग,भाग-2, समकालीन मुकरियाँ ,ओ पिता!, हलधर के हालात, उर्वी, विवेकामृत-2023,उंगली कंधा बाजू गोदी, आधुनिक मुकरियाँ, राघव शतक, हिंदी ग़ज़ल के साक्षी, समकालीन कुंडलिया शतक, समकालीन दोहा शतक और अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। पुरस्कार: दोहा शिरोमणि सम्मान, मुक्तक शिरोमणि सम्मान, कुंडलिनी रत्न सम्मान, काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान, साहित्यदीप वाचस्पति सम्मान, लघुकथा रत्न सम्मान, आचार्य वामन सम्मान चलभाष : 9412956529