आने न पाए कोई झोल
बीत गया अतीत, वर्तमान की खिड़की खोल,
यह भी चलता जाएगा, भविष्य को दे अपना रोल,
सफर जिन्दगी का गुजरता रहा यों ही अब तक,
ध्यान रखना पड़ेगा, आने न पाए कोई झोल।
जिंदगी में चाहतें भी होती हैं, होते हैं अरमान भी,
देते हैं आदेश कभी तो मिलते कभी फरमान भी,
पीड़ा-उपेक्षा-दर्दोगम सताते हैं, करते हैं दरबदर,
मिलते हैं अनमोल अनुभव, प्रेम-प्यार सम्मान भी।
जलते कभी आशा के दीपक, मिलती कभी निराशा,
कभी हार नियति हो जाती, कभी होती पूर्ण अभिलाषा,
हार को ही उपहार बनाकर जीवन सहज कभी होता,
कभी जीत का गौरव पाकर, भूलते अवसाद-हताशा।
रिश्तों की जो पौध लगाई, कभी फूलती-फलती,
कभी सेंध लग जाती है उनमें, करके एक ही गलती,
गलती-ठोकर भी सिखलाते, गिरकर उठना-संभलना,
सफर चलता रहता जब तक, सांस-शमा रहे जलती।
— लीला तिवानी