कविता

आने न पाए कोई झोल

बीत गया अतीत, वर्तमान की खिड़की खोल,
यह भी चलता जाएगा, भविष्य को दे अपना रोल,
सफर जिन्दगी का गुजरता रहा यों ही अब तक,
ध्यान रखना पड़ेगा, आने न पाए कोई झोल।
जिंदगी में चाहतें भी होती हैं, होते हैं अरमान भी,
देते हैं आदेश कभी तो मिलते कभी फरमान भी,
पीड़ा-उपेक्षा-दर्दोगम सताते हैं, करते हैं दरबदर,
मिलते हैं अनमोल अनुभव, प्रेम-प्यार सम्मान भी।
जलते कभी आशा के दीपक, मिलती कभी निराशा,
कभी हार नियति हो जाती, कभी होती पूर्ण अभिलाषा,
हार को ही उपहार बनाकर जीवन सहज कभी होता,
कभी जीत का गौरव पाकर, भूलते अवसाद-हताशा।
रिश्तों की जो पौध लगाई, कभी फूलती-फलती,
कभी सेंध लग जाती है उनमें, करके एक ही गलती,
गलती-ठोकर भी सिखलाते, गिरकर उठना-संभलना,
सफर चलता रहता जब तक, सांस-शमा रहे जलती।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244