कहानी

अनजाना रिश्ता

चालीस वर्ष पुरानी सखी कुसुम का अचानक एक जीमेल आया, पहले तो रानी पहचान ही नही सकी, फिर दिमाग पर जोर दिया, तो याद आया। पढ़ने लगी तो उसमे रानी पूरी तरह अपने को भूल गयी, और अतीत आंखों में तस्वीरे दिखाने लगा, अपने झांसी शहर की स्कूल की बचपन की सखी कुसुम उसे साफ नजर आने लगी।

सखी, जब तक तुम ये पढ़ोगी, शायद मैं दुनिया मे न रहूं, मैं कैंसर के अंतिम स्टेज में हूँ, कभी भी मेरी फ्लाइट यमराज टेक ऑफ कर सकते हैं। शायद तुम अपने बचपन की यादे बिसरा चुकी होगी, पर मेरे जेहन में हर पल अंकित है। याद है हम सात, आठ वर्ष के रहे होंगे, पड़ोसी थे। सब बड़ो के दोपहर को आराम करते समय हम दोनों और तुम्हारे अमित भैय्या ऊपर छत पर जाकर पूरे समय खेलते थे। उसके बाद स्कूल, कॉलेज में  भी साथ रहे। फिर मेरे पापा का ट्रांसफर हुआ और हम सब अलग हो गए। तुमसे तो दूर हो गयी, पर अमित हमेशा मेरे दिल के पास रहे।

उसके बाद कई वर्षों बाद तुम एक ही बार मुझसे अपनी शादी के बाद मिली, मेरे घर आईं थी। मुझे बहुत अच्छा लगा था, बहुत सी अतीत की यादें, बातें मुझे झकझोर गयी थी। तुमने बार बार मुझसे मेरे बेटे रोहित के पापा के बारे में पूछा था, कहाँ गए। वो समय ऐसा था कि मैं इस बारे में खामोश रहना ज़्यादा अच्छा समझती थी। आज तो मेरा रोहित पच्चीस वर्ष का हो गया है, आई टी मैनेजर बन चुका है। एक बार अब आकर उससे मिलना जरूर, उसे देखकर ही तुम पूरी कहानी की रूपरेखा जान जाओगी।

मैं और अमित तुम्हारे भैय्या कॉलेज से ही आकर्षण महसूस करते थे, उस समय भाग्य ने साथ दिया और एक ही शहर और एक ही कंपनी में दोनो जॉब करने लगे। रोज साथ आना जाना और कई वर्षो के साथ ने हमारी सब दूरियां मिटा दी। हम हर शाम एक साथ बिताते रहे, लगता था जीवन मे कोई कमी नही रह गयी।  जानती हो ईश्वर भी हर मानव के प्यार का कोटा मुकर्रर करता है, कोई शादी के पहले ही सब पा जाता है, कोई बाद में थोड़ा थोड़ा हर दिन अनुभव करता है। वैसे ही हमदोनो भी कुछ दिन एक दूसरे के ही लिए जीते रहे, उस समय की राजेश खन्ना की हर फेमस मूवी हमने साथ देखी, सही बताऊं, हम मूवी जाते जरूर थे, पर मूवी नही एक दूसरे को ही देखते रह जाते थे।

तीन घंटे एक दूसरे का हाथ कस के पकड़े रहते, पर मैं नही जानती थी, कि ये हाथ की रेखाएं मेरे भाग्य में ही नही लिखी। अमित अपने मम्मी पापा का बहुत सम्मान करते थे और पापा के कठोर अनुशासन का हमेशा जिक्र किया करते थे। आफिस से मेरी बड़ी दीदी के घर अमित अक्सर आते, सबसे हंसी मजाक करते पता नही कब वो घर के मेंबर ही बन चुके थे। इस बार उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया, मैं दो महीने में घर जाकर शादी की तारीख पक्की करके आऊंगा। और मेरी दीदी ने लैंडलाइन फोन में तुम्हारे पापा को सब बता दिया, तुम्हे पता ही होगा, वो शादी के लिए राजी हो गए थे। हमने दो महीने शादी की बहुत सी तैयारी भी करी, उसमे नजदीकियां कुछ ज्यादा ही गलतियां कराती गयी।

फिर अपने रिजर्वेशन के दिन अमित तुमलोगो के पास जाने को निकल गए। उसके बाद ही मुझे महसूस हुआ कि मेरे पास छोटा अमित आने वाला है। मैंने फ़ोन पर अमित को खुशखबरी दी तो वो बहुत खुश हुए और बोले, जल्दी ही आता हूँ। उसके बाद हमारे बीच आने वाले रंगीन दिनों की बातें ही होती रहती थी, अमित चाहते थे, बेटी हो, जिसका नाम रोहिणी रखेंगे, और मेरी मंशा थी, बेटा हो और बिल्कुल अमित जैसा हो, उसका नाम रोहित रखेंगे।

ईश्वर ने ये बात तो मेरी सुन ली और प्यारा सा बेटा मिला। पर नियति को कुछ और मंजूर था, एक हफ्ते बाद ही मुझे तुमने ही बताया कि भैया बाइक से कहीं जा रहे थे, ट्रक की चपेट में ऑन द स्पॉट खत्म हो गए। ये सुनकर मैं तो उसी दिन खत्म हो गयी थी। क्योंकि अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाई, मन उद्विग्न हो गया, दो दिन मैं भूखी प्यासी एक कमरे में बंद रही। उसके बाद मुझे दीदी ने संभाला और उनके बहुत आग्रह पर भी मैंने एबॉर्शन नही कराया। दीदी के कहने पर उनकी सहेली के घर आठ महीने आसाम में रही। जब रोहित एक महीने का हो गया, तब वापस लौटी। डयूटी जॉइन करनी थी, सबसे कहा, मन लगाने के लिए बेटा गोद लिया है। फिर तो समझो छोटे अमित(रोहित) के साथ मेरी जिंदगी की गाड़ी चल पड़ी, जो आजतक धीरे धीरे चलती रही। ईश्वर की दया से आर्थिक रूप से सम्पन्न रही, रोहित की शिक्षा और रहन सहन में कभी पैसा आड़े नही आया। रिटायरमेंट के बाद आराम के दिन आये। कई बार तुम्हारी याद आयी, पर इतनी लंबी कहानी कहने की हिम्मत नही पड़ती थी।

पर अचानक फिर मुसीबतों का पहाड़ मुझपर टूटा, एक दिन मैं बेहोश हो गयी, शाम को आफिस से आते ही रोहित घबरा गया और मुझे हॉस्पिटल पहुँचाया। वहां पर एक हफ्ते के डॉक्टरों के रिसर्च और टेस्ट के बाद निष्कर्ष निकला कि मुझे लंग्स कैंसर ने जकड़ लिया है। एक बार फिर मैं टूटी, इस बार रोहित ने मुझे संभाला। कई रातें मेरे सिरहाने बैठकर ऊंघते हुए उसने निकाली। कभी सिर सहलाता, कभी पैर दबाता, कभी खाना खिलाता, बड़ा प्यारा बेटा मैंने पाया, उसे देखकर मैं गर्व से भर उठती।

जीवन के अनगिनत उतार चढ़ाव के बाद भी ईश्वर अभी तक मेरी परीक्षा ले रहे हैं, वैसे अब फाइनल एग्जाम ही चल रहा है। बस एक विनती है, रोहित से मिल लेना, पूरे परिवार से मिला देना, देखने मे वो सबको अमित ही नजर आएगा। उसका परिचय क्या दोगी, ये यक्ष प्रश्न तुम्हारे लिए छोड़ जा रही हूं।

रानी ने एक सांस में पूरा जीमेल पेज पढ़ लिया, आंखों में चलचित्र की भांति हर रील बारी बारी से दिख रही थी, और नयन झील बन चुके थे। फिर जल्दी से भविष्य की भूमिका बनाने में व्यस्त हो गयी, रात के बारह बज चुके थे। बिस्तर पर पुरानी यादों के साथ उलझ रही थी, नींद का स्थान अतीत के हर पृष्ठ ले चुके थे। सोचने लगी कल सुबह सबसे पहले उठकर कुसुम से फ़ोन पर बात करूँगी, पूरी पागल है, कितना समाज से डरती रही, मुझे क्यों नही पहले ही अपना मोबाइल नंबर भेजा, मेरा तो मैंने उसको पहले ही दिया था।

सुबह चिड़ियों की चहचहाने से नींद खुली, लगा एक चिड़िया कुछ अधिक ही उसे आवाज़ें लगा रही है, कुछ निवेदन कर रही है। तभी मोबाइल में कॉलर टोन बजी, मैं चली, मैं चली, मैं तो प्यार की गली… जल्दी से देखा रानी ने और बोला, हेलो, आवाज़ आयी, “आप रानी आंटी बोल रही हैं, मम्मी ने कल ही आपका नंबर दिया, बोली मेरी ये इकलौती सहेली है, इनसे तुम मेरे बारे में बात कर सकते हो। और आज मैंने अपनी माँ, मम्मी, सहेली, सबकुछ जो थी, उसको खो दिया” और वो फफक कर रो पड़ा।

रानी क्या बोले, शब्द कम पड़ रहे थे !! बोल तो दिया, हां, मैं दिल्ली में हूँ, आने की कोशिश करती हूं। 

एक परिवार की बहू, किसी की पत्नी, किसी की जिठानी, किसी की मां, कैसे अपने मन से कहीं दूसरे शहर अचानक जाने की घोषणा कर सकती है। जबकि हर पल उसने अभीतक मायके की इज्जत को हमेशा सिर आंखों पर रखा। कैसे कह दे, कि मेरा अपना भतीजा अकेला पड़ गया है, जार जार रो रहा है, मुझे जाना होगा। सब जानते थे, भाई रोड एक्सीडेंट में विवाह से पहले ही जा चुका। धीरे से उसने अपने श्रीमान जी से कहा, सुनिये एक प्यारी सहेली स्वर्गवासी हो गयी, फ़ोन आया है, मुझे आज ही पुणे जाना होगा।

“ठीक है, ट्रेन का रिजर्वेशन मिलेगा तो करा दूंगा, वैसे मुश्किल है।” और किसी तरह रानी पुणे पहुँच गयी। घर का पता लेकर कैब से वहां पहुँच गयी, तीन दिन हो चुके थे, घर मे आर्यसमाज विधि से हवन की तैयारी हो रही थी। कुछ पड़ोसी जमा थे। दरवाजे पर जैसे ही कदम रखा, रोहित सामने से आता दिखा। वही रूप, वही रंग, वही चाल  देखकर पहले तो अपलक देखती ही रह गयी। हाथ मे बैग देखकर वो समझ गया मैं ही रानी आंटी हूँ, और जोर से बोला, “आंटी मैं पूरी दुनिया मे अकेला रह गया।” और उसकी आवाज़ सुनकर रानी ने उसे खींचकर गले से लगाया और रोते रोते बोली, अमित भैया…

“अरे आंटी, आप भूल रही हैं, मेरा नाम रोहित है।”

“हां, रोहित, गलती से अमित बोल दिया।”

कुसुम की दीदी भी आयी थी, पूजा हवन के बाद सबने खाना खाया। जैसे ही रात को मौका मिला, रानी ने पूछा, दीदी आप तो मुझे बता देते, इतने वर्ष मेरे भतीजे से दूर रखा। 

“अरे क्या बताऊँ, कुसुम ने कसम दे रखी थी, किसी को नही बताना।”

तभी कोई काम से रोहित कमरे में आया और पूछा, क्या मौसी, मम्मी ने क्या बताने मना किया था, मुझे भी सुनना है।

“कुछ नहीं, तू, हमलोग की बातें क्यों सुन रहा।”

“चलो मत बताओ, देखना ये रानी आंटी जरूर बताएंगी, पता नही क्यों यूँ लग रहा, इनसे कुछ पिछले जन्म का रिश्ता है।”

ये सुनते ही रानी फिर बिलख पड़ी।

एक बात बोलूं, कल रात मुझे अकेले घर मे नींद नहीं आ रही थी, जीवन मे पहली बार मैंने मम्मी की एक अलमारी जिसकी चाबी वो हमेशा अपने पास रखती थी, खोल लिया।

लॉकर में एक डायरी मिली, जिसमे बहुत से राज लिखे थे, कुछ बातें समझ आयी, कुछ मेरे पल्ले नही पड़ी। एक फोटो मिली, यूँ लगा मैं शीशे के सामने खड़ा हूँ। बिल्कुल मेरा ही रूप, एक बार तो शक हुआ, मेरी ही फ़ोटो है, पर नहीं, ब्लैक एंड वाइट फ़ोटो मेरी कैसे।

डायरी के एक पन्ने पर था…

अमित, पूरे जीवन मैने समाज और रिश्तों से सब छुपाकर बेटे रोहित को सारे संस्कार और एक योग्य नागरिक बनाया, आज हर क्षेत्र में वो सफल है, पर तुम्हारे बारे में सब बताने की हिम्मत मुझमें नही है। मैं कम से कम मृत्यु तक उंसकी नजरों में अपने लिए सम्मान ही चाहती हूं, पता नही सब जानकर कहीं वो मुझसे नफरत न करने लगे। इसीलिए मैंने तुम्हारे बारे में सब जानकारी देने का जिम्मा रानी को ही दे रखा है।

ये पन्ना रोहित ने रानी आंटी को दिखाया और बोला, मैं अपने आप से द्वंद की स्थिति में हूँ, जल्दी से जल्दी मुझे सब बताइये, आंटी, ये अमित कौन है ?”

रोहित बेटा बहुत रात हो गयी है, हम सब थक गए हैं।

सब कुछ बताऊंगी थोड़ा समय दो।

और कुछ घंटों की नीरव शांति में तीन प्राणी एक ही घर मे दिल मे तूफान बसाकर सोने का नाटक करने लगे।

और सुबह चाय नाश्ते के बाद रानी ने हॉल में रोहित और दीदी को बुलाया और कहा, “अब मैं तुम्हे सब बताऊंगी, पर मैं भी बहुत दुखी हूं, पता नही कितने शब्द बोल पाऊं, कितने हलक में अटक जाएं। दीदी सब जानती हैं, रोहित तुम्हे मैं वो जीमेल फारवर्ड करती हूं, जो कुसुम ने मुझे भेजा, पूरी कहानी उसके सब हर्फ बयान कर देंगे। शाम को मुझे अपने घर जाना है और अपने श्रीमान जी को भी ये जीमेल दिखाना है। मेरे हृदय में अब मैं कुछ छुपाना नही चाहती।”

दो घंटे बाद ही रोहित बिलखते हुए अमित की फ़ोटो को पापा कहकर छाती से लगाये खड़े थे और रानी से पैर छूकर बोले, “अब आप ही मेरी गार्जियन और आदरणीय बुआ हो।”

— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर