गज़ल – रात काली है
रात काली है बादल घनेरे भी हैँ
पर इन्ही बादलोँ मे छुपा चाँद है .
गम ना कर संग तेरे कोई हो ना हो
तेरे सत्कर्म का फल तेरे साथ है .
कितने जुल्मो सितम से घिरा ये जहाँ
हर कोई छल फरेबोँ से बर्बाद है .
जीँदा अच्छाईयाँ भी मिली कुछ यहाँ
जिनके कारण यहाँ सुख भी आबाद है .
मत निराशा के संगीत मेँ डुबना
सुन यहीँ गूँजता खुशियोँ का नाद है .
सारी सृष्टी का निर्माण भी कर सके
ऐसी क्षमता लिये तेरे दो हाथ है
— महेश शर्मा