गीतिका/ग़ज़ल

गजल – मंजिलें अपनी हैं कुछ दूर

मंजिलें अपनी है कुछ दूर जरा धीरज धर

अभी चलना है बहुत दूर जरा धीरज धर

तू परेशान  ना हो उनकी  बेवफाई से

वक्त का है यही दस्तूर जरा धीरज धर

हमको उम्मीद थी कुछ न्याय मिलेगा उनसे

उलझे  उलझे लगे  हुजुर जरा  धीरज धर

जो बन के बैठे हैं सरताज आसमानों पर

टूटेगा  उनका  भी गरुर जरा धीरज धर

कांटे  राहों में  सर पे धूप  पाँव   में छाले

फिर भी चलना तो है जरुर जरा धीरज धर

रात बाकी है अभी मय की कुछ कमी भी नहीं

हल्का  हल्का  रहे  सुरुर जरा  धीरज धर

—  महेश शर्मा धार

महेश शर्मा

जन्म -----१ दिसम्बर १९५४ शिक्षा -----विज्ञान स्नातक एवं प्राकृतिक चिकित्सक रूचि ----लेखन पठान पाठन गायन पर्यटन कार्य परिमाण ---- लभग ४५ लघुकथाएं ६५ कहानियां २०० से अधिक गीत२०० के लगभग गज़लें कवितायेँ लगभग ५० एवं एनी विधाओं में भी प्रकाशन --- दो कहानी संग्रह १- हरिद्वार के हरी -२ – आखिर कब तक एक गीत संग्रह ,, मैं गीत किसी बंजारे का ,, दो उपन्यास १- एक सफ़र घर आँगन से कोठे तक २—अँधेरे से उजाले की और इनके अलावा विभिन्न पत्रिकाओं जैसे हंस , साहित्य अमृत , नया ज्ञानोदय , परिकथा , परिंदे वीणा , ककसाड , कथाबिम्ब , सोच विचार , मुक्तांचल , मधुरांचल , नूतन कहानियां , इन्द्रप्रस्थ भारती और एनी कई पत्रिकाओं में एक सौ पचास से अधिक रचनाएं प्रकाशित एक कहानी ,, गरम रोटी का श्री राम सभागार दिल्ली में रूबरू नाट्य संस्था द्वारा मंचन मंचन सम्मान --- म प्र . संस्कृति विभाग से साहित्य पुरस्कार , बनारस से सोच्विछार पत्रिका द्वारा ग्राम्य कहानी पुरस्कार , लघुकथा के लिए शब्द निष्ठा पुरस्कार ,श्री गोविन्द हिन्दी सेवा समिती द्वाराहिंदी भाषा रत्न पुरस्कार एवं एनी कई पुरस्कार सम्प्रति – सेवा निवृत बेंक अधिकारी , रोटरी क्लब अध्यक्ष रहते हुए सामाजिक योगदान , मंचीय काव्य पाठ एनी सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से सेवा कार्य संपर्क --- धार मध्यप्रदेश – मो न ९३४०१९८९७६ ऐ मेल –mahesh .k111555@gmail.com वर्तमान निवास – अलीगंज बी सेक्टर बसंत पार्क लखनऊ पिन 226024