लघुकथा – भिखारी बनाम व्यापारी
“एक भिखारी ने रेल के सफ़र में एक सूट बूट पहने सेठ जी से भीख मांगी.
सेठ ने कहा, “तुम हमेशा माँगते ही हो क्या या कभी किसी को कुछ देते भी हो?”
भिखारी बोला, “मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ?”
सेठ:- “जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें माँगने का भी कोई हक़ नहीं है।”
सेठ के द्वारा कही गई बात उस भिखारी के दिल में उतर गई।
दूसरे दिन उसकी नजर कुछ फूलों पर पड़ी जो स्टेशन के आस-पास के पौधों पर खिल रहे थे, उसने सोचा, क्यों न मैं लोगों को भीख के बदले कुछ फूल दे दिया करूँ!
वह भीख के बदले में भीख देने वालों को कुछ फूल दे देता, लोग खुश होकर अपने पास रख लेते थे।
अगली बार सेठ से भीख माँगते हुए बोला, “आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ फूल हैं, आप मुझे भीख दीजिये बदले में मैं आपको कुछ फूल दूँगा।”
सेठ- “वाह क्या बात है? आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गए हो।”
बस बात उसके दिल में उतरने की देर थी और सचमुच वह भिखारी फूलों का बहुत बड़ा व्यापारी बन गया।
— लीला तिवानी