धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

हिन्दु

संस्कृत शब्दकोश में “ह” प्रतीक है ज्ञान का और “इन्दु” प्रतीक है चन्द्रतत्त्व अर्थात अन्तर्बोध का। ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र का माँ से आत्यन्तिक सम्बन्ध है। इसी कारण विद्वानों ने चन्द्र को चन्द्रमा कहा। तत्पश्चात “मा” पर चन्द्रबिन्दु का आरोहण होते ही वह “माँ” में रूपान्तरित हो गया और “माँ” शब्द का जन्म हुआ। इस तरह हिन्दुस्थान को “माँ भारती”, यह नाम मिला क्योंकि भारत हमारे देश का मौलिक नाम है। चूंकि दोनों रूपों में हिन्दु शब्द का समावेश हुआ है, इसलिए भारत की सन्तति को “हिन्दु” नाम से पुकारा गया।

जब मैंने कहा कि चन्द्र अन्तर्बोध का प्रतीक है तो उसका इतना ही अर्थ है कि इस धरा पर केवल हिन्दुओं ने ही जीवन के अन्तर्विज्ञान को जाना। सारा जगत बाहरी वृत्तियों के अंधेरे में भटकता रहा लेकिन हिन्दु अन्तर्जगत के प्रकाश की खोज में जुटे रहे। राम, कृष्ण, व्यास, बुद्ध, महावीर, गुरुनानक, गुरु गोविन्दसिंह, तुलसी इत्यादि, ऐसी न जाने कितनी अनगिनत विभूतियाँ हैं जो इस देश में उत्पन्न आततायी और पीड़ादायक परिस्थितियों के मौजूद रहते हुए भी भीतर के विज्ञान को निखारती गईं। उन्होंने अन्तर्बोध के चन्द्र को लुप्त न होने दिया। यही कारण है कि सदियों तक इस देश में तुर्कों, मुस्लिमों, यवनों, अंग्रेजों इत्यादि द्वारा अज्ञान का अँधेरा फैलाए जाने के बावजूद भी हिन्दु धर्म की लौ मन्द नहीं हुई। वह पूर्ववत जलती रही।

कोई हिन्दु शब्द के बारे में कितना ही इतिहास बताए या किसी अन्य भाषाकोश का सहारा लेकर उसे कलंकित करने का प्रयास करे, मैं सदा इस बात पर गर्व करता रहूंगा कि मैं और मेरे पूर्वज सदा ही हिन्दु थे और अन्तर्बोधलब्ध होने के कारण कभी अपवित्र न थे। उनके पावन अस्तित्व पर लांछन लगाना या उसे कलंकित करना स्वयं के अज्ञान का प्रदर्शन है।  

— अकिंचन

मदन गोपाल गुप्ता 'अकिंचन'

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