लघुकथा

लघुकथा – भिखारी बनाम व्यापारी 

“एक भिखारी ने रेल के सफ़र में एक सूट बूट पहने सेठ जी से भीख मांगी.

सेठ ने कहा, “तुम हमेशा माँगते ही हो क्या या कभी किसी को कुछ देते भी हो?”

भिखारी बोला, “मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ?”

सेठ:- “जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें माँगने का भी कोई हक़ नहीं है।”

सेठ के द्वारा कही गई बात उस भिखारी के दिल में उतर गई।

दूसरे दिन उसकी नजर कुछ फूलों पर पड़ी जो स्टेशन के आस-पास के पौधों पर खिल रहे थे, उसने सोचा, क्यों न मैं लोगों को भीख के बदले कुछ फूल दे दिया करूँ!

वह भीख के बदले में भीख देने वालों को कुछ फूल दे देता, लोग खुश होकर अपने पास रख लेते थे।

अगली बार सेठ से भीख माँगते हुए बोला, “आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ फूल हैं, आप मुझे भीख दीजिये बदले में मैं आपको कुछ फूल दूँगा।”

सेठ- “वाह क्या बात है? आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गए हो।”

बस बात उसके दिल में उतरने की देर थी और सचमुच वह भिखारी फूलों का बहुत बड़ा व्यापारी बन गया।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244