मुक्तक
ज़माने के लिये होगा अमीरी की निशानी तू
कि तारीफ़ों के पुल मत बाँध अपनी ही ज़ुबानी तू
गुज़र कर लेंगे जैसे-तैसे अपनी मुफ़लिसी में हम
जताना है अगर एहसां तो मत कर महरबानी तू
— पूनम माटिया
ज़माने के लिये होगा अमीरी की निशानी तू
कि तारीफ़ों के पुल मत बाँध अपनी ही ज़ुबानी तू
गुज़र कर लेंगे जैसे-तैसे अपनी मुफ़लिसी में हम
जताना है अगर एहसां तो मत कर महरबानी तू
— पूनम माटिया