लघुकथा

अति उत्साह!

“प्रशाला की सखियां मिलेगी, खूब धमाल करेंगे।”

“भूली बिसरी यादों का पिटारा खुलेगा।”

“मैं तो बहुत ही उत्साहित हूं।”

“सबको मिलकर गले लगूंगी मैं। सबसे पहले कांटेक्ट नंबर लेने है।” 

” खट्टी-मीठी बातें होगी। थोड़ी-सी शरारत, थोड़ी मस्ती भी।”

“इस बार हम भी कुछ अलग करते है।”

“थोडीसी मस्ती और थोडासा प्यार भी।”

सब खिलखिलाकर हंसती रही।

खूब गाना बजाना हुआ। नाचना भी। अचानक मीता के सीने में दर्द हुआ। बेहाल-सी वह नीचे गिर पड़ी।

सारा उत्साह, उल्लास काफूर हो गया। जल्दबाजी में हॉस्पिटल ले गए। ब्लड प्रेशर बढ़ गया था। 

‘समय पर ले आये हो। थोड़ी-सी भी देर जानलेवा सिद्ध हो सकती थी।

खतरे से बाहर हैं आपकी सहेली।”

अब सबने राहत की सांस ली।

बुढ़ापे को याद रख अपने आपका पूरा ध्यान रखने की हिदायत सबको दी गयी।

अति उत्साह से बचकर  रहना  हैं  हमें। बात सभी के समझ में आ गयी  थी।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८