सामाजिक

नन्हे शिशुओं की कातर पुकार, हमें स्कूल मत भेजो मार-मार

श्रद्धेय श्री मोदी साहेब,

देश के हम करोड़ों शिशुओं का प्रणाम स्वीकारने का अनुग्रह करें I 

•आपने छठी से बारहवीं के विद्यार्थियों को मनोशारीरिक रूप से सशक्त बनाने के लिए एग्जाम वारियर्स नामक पुस्तक लिखी है, आपका यह पराक्रम स्तुत्य है I

•हम शिशु हैं, मन तो हमारा भी बहुत करता है परन्तु आत्महत्या नहीं कर पाते हैं, इसलिए हमारी पीड़ा किसी को भी मालूम नहीं है I

•हमारा जन्म होता है और हमारे शरीर और रेटिना को हानि पहुँचाने वाले मोबाइल से फोटो लिए जाने लगते हैं, प्लीज बन्द करवा दीजिये, आपका उपकार होगा I 

•एक डेढ़ वर्ष की आयु में ही हमारे मस्तिष्क में अंगरेजी के शब्दों का तपेला उड़ेलने का कार्यक्रम नियमित रूप से आरम्भ हो जाता है, जबकि प्रसिद्ध भाषा विज्ञानी डॉ. नोम चोमस्की के अनुसार हमारे मस्तिष्क में जो भाषा अधिग्रहण उपकरण होता है, वह मातृभाषा के प्रति ही सहज होता है, इसलिए हम अत्यधिक परेशान हो जाते हैं I शैशवावस्था में अंगरेजी थोपने का अत्याचार बन्द करवा दीजिए I

•हमें दो ढाई साल की आयु में ही अनुशासन की कारा में डाल दिया जाता है, जबकि मेडिकल साइंस और आचार्य चाणक्यजी के अनुसार हमें पांच वर्ष की आयु तक लाड़ प्यार की आवश्यकता होती है I इसलिए माता-पिता को सख्त निर्देश दीजिए ताकि वे हमें नर्सरी स्कूलों,  प्ले स्कूलों, विभिन्न ट्यूशन के लिए पांच वर्ष तक नहीं भेजें I हमारे मनोशारीरिक और भावनात्मक विकास तथा मस्तिष्क के समग्र विकास के लिए ऑक्सीटोसिन की आवश्यकता होती है, जो माता की गोद और स्पर्श से ही मिल पाता है I

•स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि हरेक व्यक्ति के भीतर नैसर्गिक रूप से प्रतिभा होती है, उसे प्रस्फुटित होने का अवसर दिया जाना चाहिए, परन्तु वर्तमान में तो हमारी नैसर्गिक प्रतिभा में माता-पिता ही विस्फोट कर हमारे मस्तिष्क की प्रोग्रामिंग को तहस-नहस कर रहे हैं, प्लीज रोकिए I

•हमने अपना आवेदन मनोहर भण्डारी से ड्राफ्ट करवाया है, कृपया देखिएगा I

आपके ही शिशु नागरिक   

— डॉ. मनोहर लाल भण्डारी