मुक्तक/दोहा

दुर्गेश के दोहे

बसंत

आएगा फिर से वही, 

खुशियों भरा बसंत।

महकेगा सारा चमन, 

भरमाएगा कंत।

जग गाएगा गीत

पीर लिए फिरते सभी, 

अपने उर के भीत।

हंसकर जीना सीख लो, 

जग गाएगा गीत।

मोल

जीवन की गाड़ी चले,

बिन डीजल पेट्रोल।

श्रमजीवी ही जानता, 

दो रोटी का मोल।

झूठ रहा है जीत

लूटेंगे अपने यहाँ,

गैर निभाएं प्रीत। 

मतलब के संसार में, 

झूठ रहा है जीत। 

मेखला धार 

चंचल चपला चमक रही,

बीच मेघ बन नार।

धरा बावरी झूमती,

देख मेखला धार।

— विनोद वर्मा दुर्गेश

विनोद वर्मा दुर्गेश

तोशाम, जिला भिवानी, हरियाणा