तुम्हारा जाना
तुम्हारा जाना, जैसे
मछली का पानी से
बाहर आ जाना
सांसो में प्राणवायु का
कम हो जाना
तुम्ही से जीवन था मेरा
ताउम्र तुम्हारे आगे-पीछे
घूमता रहा,दुनिया को
समझने का सलीका
न आया कभी मुझे
अवलम्बन की पड़ी
जो आदत,कहो तुम ही
कैसे तुम बिन जीवन बिताएं
दिन काटे नहीं कटे
हर रात अमावस लगे
जिधर देखूँ, तुम ही तुम
नजर आते हो
पार कौन लगाऐ
जीवन नैया
सूझे न ओर-छोर
— डा. मंजु लता