कविता

तुम्हारा जाना 

तुम्हारा जाना, जैसे 

मछली का पानी से 

बाहर आ जाना 

सांसो में प्राणवायु का 

कम हो जाना 

तुम्ही से जीवन था मेरा

ताउम्र तुम्हारे आगे-पीछे 

घूमता रहा,दुनिया को

समझने का सलीका 

न आया कभी मुझे 

अवलम्बन की पड़ी 

जो आदत,कहो तुम ही

कैसे तुम बिन जीवन बिताएं 

दिन काटे नहीं कटे 

हर रात अमावस लगे 

जिधर देखूँ, तुम ही तुम 

नजर आते हो

पार कौन लगाऐ 

जीवन नैया 

सूझे न ओर-छोर 

— डा. मंजु लता 

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।