कविता

पुराना शहर 

चले हम देखने

वो पुराना शहर 

वो मकान,जो था

कभी अपना आशियाना 

लग चुका था अब

किसी और का नेमप्लेट 

पत्र-पेटी का मुंह खुला था

न रोक पाया खुद को

डाला हाथ,उम्मीद से

शायद मेरी पड़ी हो 

किसी प्रिय की चिट्ठी

मायूसी मिली 

मनीप्लान्ट मेरे बिना भी 

लहलहा रहा था

गौरैया पहले की तरह 

दरीचे के पास 

चहचहाहट रही थी 

क्षोभ हुआ यह देख 

सीख मिली

किसी के चले जाने से

कुछ रूकता नहीं 

सब यथावत चलता रहता है

जाने वाला बेवजह 

चिन्ता लिए जाता है  

— डा. मंजु लता 

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।