मर्यादाएं
जब न आकांक्षाएं, हिलोरे मारें
और न कुछ पाना, ही हो जरूरी
फिर हम क्यों, हां में हां मिलाए
ऐसी भला है, क्या मजबूरी ।।
जिसके लिए मन, न दे गवाही
फिर चाहे मिले, कितनी वाहवाही
ऐसा काम भला, क्यों करना है
होती है तो, हो जाए लड़ाई।।
एक सीमा तक ही, झुकना कबूलो
उसके बाद तो, जरूर मुंह खोलो
ऐसा न हो कि, बहुत देर हो जाए
सत्य कहीं हाथ,मलता न रह जाए
विचारों में भिन्नता,तो आवश्यक है
स्वस्थ लोकतंत्र की, यह पोशक है
लेकिन इसे यदि, व्यैक्तिक बनाएंगे
फिर तो यह,मनभेद की द्योतक है।
एक लक्ष्मण रेखा, तो होना जरूरी
जिसकी जद में हो,जीवन की धुरी
उसके बाहर कोई, जाने न पाए
राजनीति में, फिर से,शुचिता आए
महत्वाकांक्षी होने में, न कुछ बुराई
इससे ही मिलेगी, जीवन में ऊंचाई
लेकिन गलत राह, पर चल पड़े तो
निश्चित ही जग में, होगी हंसाई।।
व्यक्तिगत वैमनस्य, उचित नही है
इसमें तो खुद की, छुपी है तवाही
निज स्वार्थों को यदि, देंगे वरीयता
फिर कैसे करेंगे,जग की भलाई।
दूसरों में कमियां,हम ढूंढते फिरते
खुद करते रहते, खुल कर ढिठाई
अपने ऊपर जब, कुछ आन पड़ेगा
खुल जाएगी फिर, उनकी कलाई
निजी हो या हो,सार्वजनिक जीवन
कुछ तो मापदण्ड, होना जरूरी
सब मर्यादाएं ही,गर लांघ गये यदि
फिर तो विरोध होना, बहुत जरूरी
सब मर्यादाएं ही,गर लांघ गये यदि
फिर तो विरोध होना, बहुत जरूरी
— नवल अग्रवाल