कहानी

कहानी – स्वच्छ रहो, निरोग रहो !

पूतनी गांव में पली- बढ़ी एक साधारण परिवार की इकलौती बेटी थी। उसका छरहरा वदन ,साधारण एवं सरल व्यवहार हर किसी को भाता था । मां के साथ ही सूरज की लालिमा के साथ उठने वाली पूतनी घर के हर काम को बखूबी करती, मगर हां घर की साफ- सफाई, सजाने- संवारने से उसका दूर-दूर तक कोई वास्ता न रहता।।

पूरा घर छितरा- बिखरा देख अक्सर दादा- दादी उसे व्यंग्य करते हुए कहते– “जहां जाओगी, वहां हमारे परिवार की नाक मत कटवाना। “

देखते- देखते वह बड़ी हो गई और एक छोटे घराने के अच्छे लड़के राजेश से उसका विवाह हो गया। सब खुशी से रहते , पुतनी भी सबके साथ मिलजुल कर रहती। लेकिन यहां भी उसका वही रवैया रहा । सास -ससुर उसे बात-बात पर सफाई को लेकर टोकते। शुरू में तो पति राजेश उसकी गलतियों पर अक्सर पर्दा डाल देता, उसे समझाने की कोशिश भी करता लेकिन पुतनी “ढाक के तीन पात ” ही रही । वक्त के साथ-साथ राजेश का रवैया भी बदलता गया। वह भी गंदगी ,बिखरी हुई वस्तुओं को देख भड़क उठता। मगर पत्नी का सरल व्यवहार उसे और भी बढ़ावा दे देता। पुतनी मौन हो सब कुछ सुन लेती।

देखते – देखते घर में एक राधा जैसी बच्ची का जन्म हुआ जिसे प्यार से सभी परी कह कर पुकारते। अब पुतनी का अधिकांश समय परी के साथ ही बीतता जिससे वह घर परिवार की मूल आवश्यकताओं को तो पूरा कर देती लेकिन सफाई से तो मानो उसका रिश्ता ही बिल्कुल टूट गया था।

घर की बिखरी हुई वस्तुओं को देख सास- ससुर के साथ राजेश भी कभी -कभी व्यंग कर कह देते ” हमारा घर नहीं मछली मंडी है। ” यह सुन वह सफाई का प्रयास भी करती मगर कुछ वक्त पश्चात फिर जैसा का तैसा ही दिखता ,जिससे दोनों में बहस भी हो जाती । कभी-कभी तो राजेश औरों की बातों में आकर पुतनी पर हाथ भी उठा देता। परी को देख बहुत बुरा लगता । वह अक्सर मां को समझाने की कोशिश करती । चारों तरफ फैली गंदगी को देख कोई आता भी तो चाय पीने तक से इनकार कर देता ।

देखते-देखते परी विद्यालय जाने लगी ।वक्त बीतता गया । वह भी मां के साथ थोड़ा बहुत कामों में हाथ बटा देती, लेकिन घर की स्थिति सुधरने का नाम ही ना ले रही थी।

कल परी का जन्मदिन है। जोर-जोर से तैयारी चल रही थी। अड़ोस- पड़ोस के लोगों को निमंत्रण भी दिया गया ।वैसे तो आने वालों की संख्या बहुत कम थी और जो आए भी उनमें कुछ अपनी तबीयत का वास्ता देकर बिना कहे ही चले गए।

जन्मदिन का समारोह समाप्त हो गया। परी खुशी से सारे तोहफों को मां के पास लाई।-“मां दो दिन पहले ही अंकू के जन्मदिन पर पूरा बिस्तर तोहफो से भर गया था मगर आज मुझे तो बस इतना सा….”

… इतने में राजेश आ गए । अरे ! बेटा हमारे घर में भी पहले कोई प्रोग्राम होता था तो तोहफों के ढेर लग जाते थे, मगर अब तो …तुम्हारी मम्मी के कारनामों से कोई पैर तक नहीं रखना चाहता।”

“”क्या पापा , इसमें मम्मी ने क्या किया!””

“घर को घर रहने देगी तब तो …इतना गंदा रखती है… आखिर इस गंदगी में कोई खाने आए भी क्यों….! हम तो मजबूर हैं ।”

” “इतने में सासू मां भी दो टूक शब्दों मेंआकर कहने लगी– हमारा वश चले तो इतनी गंदगी में तो हम भी ना खाएं लेकिन क्या करें… मजबूर है हम…”

” “पापा! लेकिन मम्मी भी तो पूरे दिन काम में लगी रहती है ।””

“”लेकिन बेटा सफाई भी बहुत जरूरी है। तुम गौर कर के देखना ” “एक श्वान भी जहां बैठता है ,वहां पहले साफ करता है फिर बैठता है।”” हम तो इंसान है।”

परी झुंझला कर बोली– “तो क्या पापा ,सारी सफाई के जिम्मेदारी सिर्फ मम्मी की है।””
पुतनी अवाक हो सोच में पड़ गई ।एक तरफ तो उसे ममता, दूसरी तरफ पिता के साथ दुर्व्यवहार का एहसास हुआ । “बेटा परी! पापा से ऐसी बातें नहीं करते। सॉरी बोलो उन्हें !” उसने समझाते हुए प्यार से कहा।

“मगर मम्मी …मैंने गलत क्या कहा? आप प्रातः काल सूरज की लालिमा निकलने से पहले से ही पहिए की तरह चलती रहती हो फिर भी…”
“बेटा छोडो ना, हम लड़कियों की किस्मत कुछ ऐसी ही होती है। कितना भी कुछ कर दो लेकिन सामने वाले को संतोष दिलाना बहुत मुश्किल होता है । कितने भी ऊंचे पद पर बैठ जाएं लेकिन उसे घर परिवार और बच्चों के जिम्मेदारी उठानी ही पड़ती हैऔर मैं तुम्हारे पापा पर निर्भर हूं । मेरी तो कुछ आय भी नहीं!”

“”मां इसका मतलब क्या …”

” कुछ नहीं। ज्यादा मत सोचो। इसलिए तो कहते हैं तुम अच्छे से पढ़ाई करो ताकि आत्मनिर्भर बन सको।”

मां की हालत को देख परी अपनी पढ़ाई के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाने लगी। वह पढ़ाई से बचे समय भी सफाई का खास ख्याल रखती। अब पुतनी भी थोड़ा- थोड़ा इन चीजों पर ध्यान देने लगी। जिससे लोगों का आना-जाना भी होने लगा। धीरे-धीरे पूरा घर साफ-सुथरा दिखने लगा। यह देख एक दिन राजेश बोले– क्या बात है हमारा घर बिल्कुल अलग-अलग सा दिखने लगा है।
पत्नी बोली –“यह सब परी का कमाल है “

पापा मैं तो…”

“”क्या किया परी ने?””

“पापा कुछ नहीं, बस सिर्फ मां का थोड़ा हाथ बंटा दिया । तो पूरा घर इतना सुंदर हो गया । यदि घर के सभी सदस्य थोड़ा-थोड़ा भी सफाई का ध्यान रखें तो पूरा घर यूं ही स्वच्छ रहेगा। पापा कल हमारे विद्यालय में बल्लभ सर ने भी सफाई अभियान पर चर्चा की थी। यदि मोहल्ले का हर आदमी थोड़ा-थोड़ा सफाई कर ले तो पूरा मोहल्ला यूं ही हमेशा साफ रहेगा। जिससे गांधी जी का स्वच्छता आंदोलन भी सफल हो जाएगा और हमारा परिवेश भी साफ- सूथरा रहेगा। हैजा ,चिकनगुनिया जैसी भयानक जानलेवा बीमारियों से भी हमारी रक्षा होगी।”

राजेश परी के मासूम शब्दों में एक तरफ तो मां की ममता तो दूसरी तरफ अच्छे नागरिक होने का संदेश भी महशुश कर रहा था। “वाह ! बेटा , अब हमारी बेटी बड़ी हो गई है। बड़ी-बड़ी बातें करने लगी है।”

“हां पापा ,
“”परी देशमुख हूं मैं! ”
अच्छी नागरिक बनूंगी। दूसरों के लिए मिसाल और प्रेरक भी… ।

उसकी बातें सुन राजेश और पोतनी के चेहरे पर खुशी और शाबाशी की लहर दौड़ गई।

— डोली शाह

डोली शाह

1. नाम - श्रीमती डोली शाह 2. जन्मतिथि- 02 नवंबर 1982 संप्रति निवास स्थान -हैलाकंदी (असम के दक्षिणी छोर पर स्थित) वर्तमान में काव्य तथा लघु कथाएं लेखन में सक्रिय हू । 9. संपर्क सूत्र - निकट पी एच ई पोस्ट -सुल्तानी छोरा जिला -हैलाकंदी असम -788162 मोबाइल- 9395726158 10. ईमेल - shahdolly777@gmail.com