गीत/नवगीत

शक्तिस्वरूपा नारी

ईश्वर की अनुपम रचना, मैं शक्तिस्वरूपा नारी हूँ ।

कुल परिवार सँभाल रही हूँ,, घर भर की उजियारी हूँ

‘माँ’ कहकर संतान पुकारे

मुझे मिले गरिमा – महिमा

बच्चों की ममता के आगे 

तुच्छ हुई अणिमा – लघिमा

देह, गेह, सुख नहीं चाहिए, स्वयं ही पर उपकारी हूँ। 

भैया की मैं ‘बहिन’ हूँ प्यारी

लुटा रही मैं उसपर स्नेह 

वह मेरे सम्मान का रक्षक 

बरसे आशीषों का मेह 

दो शरीर, पर एक प्राण हम, आदर की अधिकारी हूँ। 

माता-पिता पुकारें ‘बेटी’ 

मुझको देते सुख – सुविधा 

मेरे मन में  चिंता रहती 

दूर करूँ सारी दुविधा 

जीवन – साध करूँगी पूरी, गुड़िया बहुत दुलारी हूँ। 

‘अर्द्धांगिनी’ पुरुष की बनकर 

पत्नी – प्रिये मिला संबोधन 

तन – मन, जीवन एक हो गए 

सर्वेश्वर का पा सम्मोहन 

पूर्ण हुआ उत्सर्ग – समर्पण, पूरक बन आभारी हूँ। 

पाश्चात्य संस्कृति में डूबा 

लगने लगा समाज पिशाच 

लज्जा लुटती है गलियों में 

पाशवता का नंगा नाच 

पुत्र, पिता, भाई या स्वामी, सोचो! क्यों दुखियारी हूँ। 

श्रेष्ठ आर्य संस्कृति अपनाओ 

दूर करो नारी – क्रंदन 

कौशल, कला, ज्ञान देकर के 

फिर हो देवि शक्ति वंदन 

आँगन की नन्हीं चिड़िया,  मैं हरी – भरी फुलवारी हूँ ।

ईश्वर की अनुपम रचना, मैं शक्तिस्वरूपा नारी हूँ ।

गौरीशंकर वैश्य विनम्र 

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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