कविता – आगे बसंत
पियर-पियर सरसो फूले, पियर उड़े पतंग ,
पियर पगड़ी पहिर के, आगे ऋतु राज बसंत ।
अमरय्या मा आमा मयुरे कारी, कोयली कुहुकत हे ,
लाली-पियुरी परसा फूले, सबों के मन हा पुलकत हे ।
सरर-सरर चले पुरवाही ,मन मयुर झूमें नाचे ,
फागुन के फाग संग, सुग्घर डोल नगारा बाजे ।
पातर -कवर गांव के गोरी, झुले कान के बाली ,
मया-पिरीत के बांधे, डोरी हंसी अऊ ठिठोली ।
मन भावन उत्साह ,अऊ उमंग ज्ञानी ,गुनी ,संत ,
मन मा खुशी गजब ,सुग्घर लागे आगे बसंत ।
कतिक करव बखान ,तोर हे ऋतु राज बसंत ,
तोर महीमा ल बताइन ,दिनकर ,वर्मा अऊ पंत ।
— डोमेन्द्र नेताम (डोमू )