पौधरोपण
पौधरोपण
“क्या बात है दद्दू, आप कुछ उदास लग रहे हैं ? कहीं जलन तो नहीं हो रही है न आपको ?” लगभग दो घंटे पहले रोपे गये नन्हे पौधे ने बाजू में खड़े विशाल बरगद के पेड़ से व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।
“जलन ? कैसी जलन नन्हे ?” बूढ़े बरगद ने प्यार से पूछा।
“यही कि आज कई व्ही.आई.पी. स्त्री-पुरूष आकर यहाँ बड़े शौक से पौधरोपण किए। ढेर सारी फोटोग्राफी की। खाद-पानी डाले, पर किसी ने आपकी ओर देखा तक नहीं।” नन्हा पौधा बोला।
“मेरे लिए ये कई नई बात नहीं है नन्हे। ऐसा दृश्य इधर लगभग हर साल होता है। यहाँ व्ही.आई.पी. लोग आते हैं, पौधरोपण करते हैं, खूब सारे सेल्फी-वेल्फी लेते हैं। सोसल मीडिया में जमकर शेयर करते हैं और न्यूज चैनल और अखबारों में भी खूब प्रचार-प्रसार करते हैं, पर बाद में पौधों की पूछ-परख शायद ही करते हैं। भले ही ये लोग लंबे-चौड़े संकल्प लें, पर अमल शायद ही….” कहते हुए बूढ़े बरगद की आँखों में आँसू आ गए।
“तो क्या ये लोग अब दुबारा इधर का रूख नहीं करेंगे ?” नन्हे पौधे ने रुँआसे गले से पूछा।
“काश ! करें कोई। वैसे विगत वर्षों में ऐसा किए होते तो, आज इधर घना जंगल हो चुका होता।” बरगद ने अपने अनुभव का सार निचोड़ कर उसके सामने रख दिया।
“फिर आप कैसे ?” नन्हे पौधे ने जिज्ञासावश पूछ लिया।
“किस्मत से बच गया मैं। बरसात के महीनों में रोपा गया था। फिर एक सनकी किसान की दया-दृष्टि भी रही, जो यहीं आकर बैठा करता था।”
“काश ! मुझे भी कोई ऐसा भलामानुष मिल जाए।” नन्हा पौधा आसमान की ओर देखते हुए बोला।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायगढ़, छत्तीसगढ़