ऐसे भी मंत्री
ऐसे भी मंत्री
नवतपा शुरू होने में अभी समय था, परंतु सूर्य देवता अपना प्रचंड रूप दिखाने लगे थे। तापमान 45 डिग्री सेंटीग्रेड पार कर चुका था। लू और गर्मी जनित रोगों से सरकारी अस्पताल में बैड कम पड़ने लगे थे। भीषण गर्मी और आधे से अधिक एसी और कूलर खराब। मरीजों के ठीक होने की बजाय और बीमार होने की आशंका बढ़ गई थी।
मंत्री जी अचानक निरीक्षण पर पहुँचे। अस्पताल प्रबंधन से एसी और कूलर तत्काल ठीक करने या नये लगवाने के निर्देश दिए।
मैनेजर ने बताया, “सर अभी आम चुनाव की वजह से देश भर में आचार संहिता लागू है। मैनटेनेंस की ए.एम.यू. की डेट पार हो चुकी है। इसलिए काम अटका हुआ है।”
मंत्री जी ने कहा, “तो क्या आचार संहिता हटते तक लोगों को इसी हालत में मरने के लिए छोड़ दें ?”
मैनेजर साहब क्या बोलते ?
मंत्री जी ने पूछा, “यदि कोई व्यक्ति कुछ एसी और कूलर अस्पताल प्रबंधन को दानस्वरूप दे, तो उसे लगा सकते हैं कि नहीं ?”
मैनेजर बोला, “लगा सकते हैं सर, परंतु देगा कौन ?”
मंत्री जी फिर से पूछा, खराब एसी और कूलर की रिपेयरिंग पर लगभग कितना खर्चा आएगा ?”
मैनेजर ने बताया, “लगभग डेढ़ लाख रुपए सर।”
मंत्री जी बोले, “जो फर्म यह काम करता है, उसके मैनेजर से मेरी बात कराओ।”
मैनेजर ने तत्काल उनकी बात कराई, “मैनेजर साहब आपके खाते में अभी हम पाँच लाख रुपये ट्रांसफर कर रहे हैं। यहाँ सरकारी अस्पताल के जितने भी कूलर और एसी खराब हैं, उन्हें एक हफ्ते के भीतर सुधारिए और दो-दो टन के दो-दो एसी दोनों जनरल वार्ड में और 20 नये कूलर यहाँ आज शाम तक भिजवाइए। और हाँ, बिल हमारे पर्सनल नाम से बनाइएगा, कार्यालय के नाम से नहीं। शेष राशि काम होने के बाद हम आपके खाते में ट्रांसफर कर देंगे।”
मंत्री जी ने मैनेजर से फर्म का एकाऊंट नंबर लेकर उसमें पाँच लाख रुपये जमा करवा दिए।
मैनेजर सहित उपस्थित सभी अधिकारी, कर्मचारी, मरीज और उनके परिजन कृतज्ञ भाव से देख रहे थे।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़