सामाजिक

हाय रे पैसा

आजकल हर व्यक्ति इसी जुगाड़ में रहता है कि कहीं से भी पैसा मिल जाए। वह हर प्रकार से यत्न करता है कि सरलता से चार पैसे हो जाएं तो वह अपना कोई काम आरम्भ करेगा। इस सोच से वह नैतिक अथवा अनैतिक काम करने को तैयार रहता है परंतु पहले नैतिक रूप से पैसा कमाना चाहता है और जब इसमें सफलता नहीं मिलती तो अनैतिक तरह से पैसा एकत्रित करना आरम्भ करता है। पैसे के लिए पता नहीं क्या क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं तब कहीं कुछ हाथ में आता है।

साधारणतया पैसा शब्द का प्रयोग धनराशि के लिए किया जाता है। भिखारी को आप पांच रुपए से कम राशि दें तो वह नाराज हो जाएगा और ऐसा लगेगा कि उसके आत्मसम्मान पर आपने प्रहार किया है और वह लौटा देगा या कह देगा, “एक रूपये में क्या मिलता है, कम मे कम 10 रुपए दो, एक चाय तो मिल जाए।”यहां पैसा भीख का भाग है। इसी प्रकार हम मंदिर में वही पैसे देते हैं तो वह चढ़ावा हो जाता है।चाहे आप एक रुपये से  लाख-करोड़ रुपया दें। देवता के लिए हार, मुकुट, कुंडल आदि का चढावा भी पैसा ही है।यह चांदी से हीरे तक के हो सकते हैं। हमारे मंदिरों में टनों में आभूषण चढाए जा चुके हैं और वे भंडार में सुरक्षित रखे हुए हैं। संस्था को पैसा दिया तो दान हो गया। धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक संस्था को दिया पैसा चंदा कहलाता है।

के जी से लेकर विश्वविद्यालय तक यही पैसा बच्चों की फीस के रुप में दिया जाता है और इसके साथ ही छात्रावास फीस आदि हैं।  न्यायालय, हस्पताल आदि की फीस भी इसी पैसे का अन्य रूप है।घर, दुकान और वाहन आदि का रजिस्ट्रेशन, स्थानांतरण आदि की फीस  देय है। कहीं कोई गल्ती हो गई या कर दी तो पैसा दंड, जुर्माना आदि के रूप में देना पड़ता  है। पैसे के एक अन्य रूप को काम कराने की सरलता के लिए फीस (फैसिलिटेशन फीस),  रिश्वत, घूंस, होटल टिप आदि देय है। साधारणतया विवाह के समय बेटी की विदाई समय उसके माता-पिता दहेज के रुप में अपनी सामर्थ्य के अनुसार धनराशि, आभूषण, वस्त्र, बर्तन, फर्नीचर, वाहन और यहां तक कि पूरी तरह सुसज्जित घर इत्यादि देते हैं जो पैसे का ही रुप है। जब बैंक या किसी वित्तीय सहयोग संस्थान से पैसा लेते हैं तो वह ऋण है और यदि किसी को सहयोग देते हैं तो वह कर्ज कहलाता है। ऋण लेने में पैसा लिया जाता है और ऋण लौटा देने पर पैसा ही लौटा दिया जाता है।

श्रमिक, ठेके पर काम करने वाले और दैनिक भोगी व्यक्ति को मजदूरी, पगार (मेहनताना) पैसे के रूप में मिलता है परंतु कर्मचारी को महीने के अंत पर यह वेतन के रुप में मिलता है। इसके अतिरिक्त कर्मचारियों को कई प्रकार के भत्ते मिलते हैं।यह सभी पैसे के विभिन्न स्वरुप है। महंगाई, साईकल, वाहन, यात्रा, वर्दी और उसकी धुलाई आदि के लिए वेतन के साथ भत्ते मिलते हैं। कुछ संस्थान कभी-कभी अपने कर्मचारियों को बोनस, तोहफे (गिफ्ट) आदि देते हैं।यह उन्हें अपनी कार्यकुशलता बढ़ाने या उत्साहित करने के लिए दिए जाते हैं। गत वर्ष इसके अंतर्गत हीरे के एक उद्यमी ने अपना हर कर्मचारी को फ्लैट और एक अन्य ने वाहन दिया। इसके विपरीत तलाक होने पर भरण-पोषण भत्ता न्यायालय नियत करता है, वह पैसे के रुप में हर महीने,वार्षिक या एक ही बार देय होता है।

फिरौती वसूलने का धंधा आजकल कुछ प्रगति पर है। अमीर बच्चों और उनके आश्रितों को बंधक बनाकर रखा जाता है और फिर उनसे यही पैसा वसूला जाता है।
कुछ व्यक्ति अव्यस्क लड़कियों को अनैतिक कार्य अथवा वेश्यावृत्ति में लिप्त कर पैसा कमाते हैं।इसमें व्यस्क महिलाएं भी सम्मिलित हैं।विदेश में इन्हे बेचकर पैसा बनाया जाता है। वाह रे आदमी, पैसे के लिए सबकुछ कुर्बान?

— डा- वी के शर्मा

डॉ. वी.के. शर्मा

मैं डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय सोलन से सेवा निवृत्त प्रोफेसर बागवानी हूं और लिखने का शौक है। 30 पुस्तक 50 पुस्तिकाएं और 300 लेख प्रकाशित हो चुके हैं। फ्लैट 4, ब्लाक 5ए, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, संजौली, शिमला 171006 हिमाचल प्रदेश। मेल dr_v_k_sharma@yahoo.com मो‌ फो 9816136653