ग़ज़ल
तू कहे तो ग़ैर से हम दिल लगाना छोड़ दें
है बना दुश्मन ज़माना ये बताना छोड़ दें
आज राहों पर चले तो बेवफ़ा हम क्यों बनें
है अगर यह बात तो क्या पग बढ़ाना छोड़ दें
आ रही लब पे हँसी तो काम बनते जा रहे
तू कहे तो हम हँसे क्यों मुस्कुराना छोड़ दें
आज खुद के ही लिए तो जी रहा है आदमी
आदमी की कद्र सुनो क्या आज करना छोड़ दें
जंगलों को अब भला क्यों काटता ही जा रहा
कह रहे हम देख वीराना बनाना छोड़ दें
दुश्मनी का काम करता जा रहा कोई कहीं
इस तरह की सेंध अब तो सब लगाना छोड़ दें
आज कब्ज़ा सब करेंगे है मकां खाली पड़ा
झूठ की अब तो वसीयत सब लिखाना छोड़ दें
अब किनारे ही समुद्र के घर बनाया देख ले
जलजलों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
अब निराशा घर ले जो क्या करेगें तबके लिए
गिर पड़े कोई अगर तो क्या उठाना छोड़ दें
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’