कविता

नवसंवत्सर

नवसंवत्सर मंगलमय हो ।

जग भर में भारत की जय हो।

पूरे हों संकल्प सुपावन 

जनगणमन उन्नत – निर्भय हो।

पंचतत्व को रखें सुरक्षित 

ऊर्जा हरित विपुल संचय हो। 

फूलें-फलें विटप, पशु – पक्षी

भू पर हरियाली अक्षय हो। 

बढ़े ज्ञान – विज्ञान निरंतर

निज संस्कृति की मोहक लय हो। 

रहे न कोई भूखा – नंगा

जन – जन से स्नेहिल परिचय हो।

संघर्षों से क्या घबराना 

कितना ही प्रतिकूल समय हो। 

पुष्पों – सी मुस्कान विखेरें

जीवनकाल भले कतिपय हो। 

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र 

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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