जीवन गणित
जिंदगी के गणित में
तुमने रेखागणित को चुना
और मैं,
मैं खुद बना रहा एलजेब्रा
मान लेता अचर को कोई चर
और सुलझा लेता
उलझी हुई समीकरणों को,
एक रोज जब मैंने चाहा
जिंदगी का हल
तब तुम बोली-
रेखागणित सी इस दुनिया में
मैं और …. और तुम
दो समांतर रेखाएँ
जैसे नदी के दो तीर,
सिर्फ साथ चल सकते हैं,
दूर से एक-दूसरे को
देख सकते हैं,
शायद महसूस भी कर सकते हैं
लेकिन,
अगर गलती से मिल गये तो
अपना अस्तित्व समाप्त,
मैंने कहना चाहा प्रतिउत्तर में-
तिर्यक रेखाएँ भी उसी
रेखागणित का हिस्सा है,
साथ चलते हुए
एक बार मिलती है
और बस एक बार मिलकर
फिर नहीं मिलती
और यह मिलना
कोई संयोग न होकर
हो जाता है अक्सर
ऐतिहासिक योग
शकुंतला का जन्म भी सम्भवतः
ऐसे ही तिर्यक रेखाओं का
अद्भुद संयोग रहा होगा
लेकिन-तुमने
बाँध लिया खुद को
समांतर रेखाओं के दायरे में,
ये दायरे मुझे एलजेब्रा से
निकाल समांतर रेखा की मर्यादा
सिखाते लगते हैं
और मैं ख़ो जाता हूँ
वृत की एक निश्चचित त्रिज्या के गिर्द
घूमते पथ से निर्मित परिधि के आकर्षण में।
— संदीप तोमर