हवाऐं जो बताती हैं रुख अपना
हवाऐं जो बताती हैं रुख अपना पेडों के सूखे पतों को उडाकर
हसीनाऐ ज़ाहर करती हैं खुशी अपनी
इन्ही हवाओं में अपने दामन को लहराकर
चलते रहना ही काम है इस दुनिया का
निज़ाम जिस का बदल सकता नही
कोइ भी चाहकर लौटकर आते नहीं दुनिया से चले जाने वाले
गुज़ारो इस लिए ज़िनदगी अपनी को मुस्कराकर
तोडा तो होगा बुहत बार दिल आपका बेदर्द लोगों ने ठोकरें मारकर
खुश रहें वो सारे लोग दुनिया के चले गए हैं जो आपको ग़मों में डुबोकर
रहना मुमकिन नहीं हसीनों के दिल में मदन
बदलते हैं जो रंग अपना बदलते मौसम की तरह
रहना है तो रहो उस परमात्मा के दिल में
खुश होता है जो बुहत सबको अपना बनाकर
— मदन लाल