तनहा
शाम तनहा है और सहर तनहा
उम्र अपनी गई गुज़र तनहा
छुप गए साये भी अँधेरों में
रात को हो गया शहर तनहा
कोई दस्तक ना कोई आहट है
किसको ढूँढे मेरी नज़र तनहा
मंजिलों पर पहुंच गए राही
रह गई पीछे रहगुज़र तनहा
कभी रहते थे बादशाह जिसमें
आज रोता है वो खंडहर तनहा
माल-ओ-दौलत यहीं रह जाती है
देख सोया है सिकंदर तनहा
साथ अपने तू ले गया सबकुछ
रह गया मैं मेरे अंदर तनहा
— भरत मल्होत्रा