लो उन्मुक्त उड़ान
जब भी सोचती हूं,
अपनों के बारे में,
क्यों नहीं सोचती हूं अपने बारे में?
नारी जगत जननी,
नारी क्षमा, करुणा मूर्ति,
देवी, दुर्गा, लक्ष्मी माता,
रूप विविध, स्वरूप अनेक,
बेटी, भगिनी, प्रिया, माँ,
नन्ही कली, पराया धन,
घर-आँगन की झंकार,
प्यार, दुलार, स्नेह रिमझिम,
नारी, नीति-रीति बंधन,
लिए नित नया आवर्तन,
औरों के लिए जीती,
घर-द्वार सजाती, संजोती,
समर्पित जिंदगी हैं तुम्हारी,
जिओ अपने लिए भी,
लगाओ सुख सागर में डुबकियाँ,
महकाओ जीवन बगियां,
फैला पाँखें, लो उन्मुक्त उड़ान,
कौशल से जीत लो, सारा जहान,
छू लो आकाश की ऊँचाइयाँ,
आत्मविश्वास छलके, बढे आत्मसम्मान।