कविता

हे कौन्तेय

महाभारत के श्रेष्ठतम पात्र,
वह थे उनके ही ज्येष्ठ भातृ|
किया शिशु को प्रवाहित गंगा नदी में,
जो थी उनकी और पांडवों की मातृ|
सचमुच तुझे सब ने छला,
मात-पिता गुरु संग यशोदा के भी लला|
जो ना विस्मृत होता तुझे वह ज्ञान,
वध तेरा नहीं था आसान|
सूर्य थे पितृ किन्तु मन में कैसा था खोट
वह भी छुप गए बादलों के ओट|
माता को भी अभी था बताना,
युद्ध का निष्कर्ष था जब आना|
बता दिया कि तुम हो ज्येष्ठ कौन्तेय,
पार्थ से क्यों नहीं किया याचना?
वाकई तूने खाई बहुत ही चोट है
वाकई तूने खाई बहुत ही चोट है|
परंतु हे राधेय हे कौन्तेय हे अंगराज,
हे दुर्योधन के मित्र श्रेष्ठ,
सच में तुम तो हो महान,
दिनमान के तुम हो संतान,
किंतु चक्रव्यूह में अभिमन्यु के,
छल से तुम भी हरे हो प्राण|
हे अंगराज महान चाहे लाख दानवीर हो,
श्री श्रद्धेय परशुराम के शूरवीर हो,
परंतु यज्ञसेनी की भरी सभा में,
हरण किये तुम भी चीर हो|
अधर्म का दिया साथ,
पाप खुद लिया माथ,
बात जब धर्म अधर्म की हो,
तब धर्म ही आएगा हाथ|
किंतु हे कर्ण तुझसे अद्भुत प्रीत है,
तेरी हार में भी तेरी जीत है,
बुरा का अंत तो होगा बुरा
यही तो दुनिया की रीत है|
हे सूर्यपुत्र तुझे ह्रदय से नमन,
सब करते हमेशा तेरा वंदन,
पूजे जाते हो तुम सदा,
अर्पित चरणों में तेरे सुमन!

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]