मुक्तक/दोहा

मुक्तक

खुद को खुद में दफनाकर जी रहा हूँ मैं,
इश्क़ करके जहर ए जुदाई पी रहा हूँ मैं।
सुनो जरा! दोष उसका नहीं मेरा है यारों,
अपने ज़ख्मों को चुपके से सी रहा हूँ मैं।

— डॉ. विकास शर्मा

डॉ, विकास शर्मा

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