कविता

कविता – सभ्य नागरिक

आखिरकार

हम क्यों नहीं बन सके

एक सभ्य नागरिक

एक सभ्य देश के।

बेहद महत्वपूर्ण

और

विचार का मुद्दा है यह

कि सभ्य नागरिक बनाने

वाले बाजार

और दुकानें

आजादी के बाद बढ़ती गयी

और बढ़ती गयी

शिक्षण संस्थाएं,

मंदिर – मस्जिद, सत्संग भवन।

साहित्यिक, सामाजिक और

सांस्कृतिक संस्थाओं का

विकास हुआ दिन- रात

और हम

दिन दूना रात चौगुने की दर से

होते गये

असभ्य और असभ्य।

पहले से ज्यादा

और कहीं ज्यादा

और आज तो

यह असभ्यता और भी चरम पर है।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890