समय की धारा में
लौट के तो आ गए कदम
पर साँसें वही गई है थम।
यादों की गठरी को चुन ली
जीवन में अब कैसा है गम।
बीते लम्हें क्या हैं काम
संग जब वो तो छटेंगे तम।
नदी के दो किनारे सही
सदा रहेंगे हम तो सम।
— सविता सिंह मीरा
लौट के तो आ गए कदम
पर साँसें वही गई है थम।
यादों की गठरी को चुन ली
जीवन में अब कैसा है गम।
बीते लम्हें क्या हैं काम
संग जब वो तो छटेंगे तम।
नदी के दो किनारे सही
सदा रहेंगे हम तो सम।
— सविता सिंह मीरा