निग्रह से हो जीत
इंद्रिय वश में रख सदा, होगी जग में जीत।
मुख-मंडल का तेज बढ़े, संयम से हो प्रीत।।
आकांक्षाओं के भार से, प्रभु-प्रीत दब जाये।
अपेक्षाओं को छोड़ दे, मन-मंदिर बन जाये।।
पंचभूत निर्मित काया में, नाना भांति विकार।
अहं-मद-मोह-लोभ-क्रोध, हैं विकार विकराल।।
अनासक्ति के व्रत से हो, इंद्रिय-निग्रह मीत।
मन की आंधी जब चले, निग्रह से हो जीत।।
पंच प्रकार ज्ञानेन्द्रिय के, पंच कर्मेन्द्रियां होयं।
अनुशासित जीवन से ही, मन-अशांति को खोयं।।
मनोनिग्रही हो रे मना, कर ले प्रभु का ध्यान।
तत्वदर्शी कहलाएगा, जब हो संयम-ज्ञान।।
— लीला तिवानी