कविता

हर कोई अपना-सा लगता

जीवन चलता, समय बदलता,
पल-पल बदलतीं करवट राहें,
उम्र की हर दहलीज पे देखा,
पल-पल बदलतीं मन की चाहें।

बदलते हैं निर्णय जीवन के,
लक्ष्य बदलते, जीवन चलता,
मंजिल पर पहुंचे तो देखा,
हर कोई अपना-सा लगता।

वैर किसी से न हमने पाला,
मौका देख के खुद को ढाला,
स्नेह-सुमन वहां खिलते देखे,
तरल बीज जहां हमने डाला।

देखे फ़िज़ाओं के बदलते रंग,
कभी गम के साये, कभी उफनती उमंग,
हर रंग ने सिखाया कुछ नया-नया,
हर मंजिल पर मिली नयी तरंग।
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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