स्वाभिमान
नई नौकरी से संभावना बहुत खुश थी. पहले वाली नौकरी में उसके समक्ष दो विकल्प थे- “बॉस के दंभ के आगे समर्पण करना” या “स्वाभिमान के सूरज से अपनी नजरों में अपना सम्मान बढ़ाना”.
दूसरे विकल्प को चुनकर संभावना ने अपनी उम्मीदों की संभावनाओं को पल्लवित किया.
“शिक्षित भी हूं और प्रशिक्षित भी, नौकरी तो मिल ही जाएगी! हो सकता है इससे भी बेहतर मिले! इस महीने के 8-9 दिन का वेतन नहीं मिलेगा कोई बात नहीं, रखे बॉस पैसा भी और अपना दंभ भी अपने पास!” उसने तुरंत निर्णय लिया.
उस दिन अचानक उसकी तबियत खराब हो गई थी और उसके लिए ऑफिस में रुकना-बैठना-काम करना असंभव था, बॉस से छुट्टी के लिए बोलने गई.
“अचानक से ऐसे छुट्टी नहीं दी जाएगी. तबियत खराब होने पर पहले बताना चाहिए था सुबह!” बॉस के दंभ ने उत्तर दिया.
बैठना नामुमकिन था, सो थोड़ी देर में दवाई लेकर आने का बहाना करके निकल गई थी, फिर वापिस किसने आना था!
उस महीने के 8-9 दिन का वेतन तो उसे नहीं मिला लेकिन मिल गयी थी उससे भी लाख गुना अच्छी नौकरी.
इतनी मजबूरी और परेशानी में भी छुट्टी न मिलना उसके लिए भी सुफलदायक रहा और स्वाभिमान के लिए भी!
— लीला तिवानी