लघुकथा

स्वाभिमान

नई नौकरी से संभावना बहुत खुश थी. पहले वाली नौकरी में उसके समक्ष दो विकल्प थे- “बॉस के दंभ के आगे समर्पण करना” या “स्वाभिमान के सूरज से अपनी नजरों में अपना सम्मान बढ़ाना”.
दूसरे विकल्प को चुनकर संभावना ने अपनी उम्मीदों की संभावनाओं को पल्लवित किया.
“शिक्षित भी हूं और प्रशिक्षित भी, नौकरी तो मिल ही जाएगी! हो सकता है इससे भी बेहतर मिले! इस महीने के 8-9 दिन का वेतन नहीं मिलेगा कोई बात नहीं, रखे बॉस पैसा भी और अपना दंभ भी अपने पास!” उसने तुरंत निर्णय लिया.
उस दिन अचानक उसकी तबियत खराब हो गई थी और उसके लिए ऑफिस में रुकना-बैठना-काम करना असंभव था, बॉस से छुट्टी के लिए बोलने गई.
“अचानक से ऐसे छुट्टी नहीं दी जाएगी. तबियत खराब होने पर पहले बताना चाहिए था सुबह!” बॉस के दंभ ने उत्तर दिया.
बैठना नामुमकिन था, सो थोड़ी देर में दवाई लेकर आने का बहाना करके निकल गई थी, फिर वापिस किसने आना था!
उस महीने के 8-9 दिन का वेतन तो उसे नहीं मिला लेकिन मिल गयी थी उससे भी लाख गुना अच्छी नौकरी.
इतनी मजबूरी और परेशानी में भी छुट्टी न मिलना उसके लिए भी सुफलदायक रहा और स्वाभिमान के लिए भी!

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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